आयु में कम, किंतु ज्ञान में असीम थे स्वामी विवेकानंद। राष्ट्र निर्माण को जीवन का उद्देश्य मानने वाले स्वामी विवेकानंद सदैव देश के गौरव और स्वाभिमान को प्राथमिकता में रखा। वह सदा भारत की युवाओं के बीच मातृभूमि भारत भूमि में जन्म लेने के गौरव का आवाहन करते रहे। यही कारण है कि उनकी जयंती 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाया जाता है। आज के दौर में भी स्वामी विवेकानंद जी की प्रासंगिकता को बताना मुश्किल है परंतु हम इस आर्टिकल के माध्यम से आप तक कुछ बातें पहुंचाने का प्रयास करेंगे। कृपया इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
19वीं सदी के अंतिम दशक में की गई एक भविष्यवाणी भारत अकल्पनीय परिस्थितियों के बीच अगले 50 वर्ष में ही स्वाधीन हो जाएगा सच निकली। यह विश्वास और युवा परिव्राजक स्वामी विवेकानंद का था, जिन्होंने अपने विचारों से उस दौर के समाज को चेतना के उच्च स्तर पर जागृत करने का प्रयास किया, जहां अपनी संस्कृति के प्रति गौरव भाव से ही स्वतंत्र लहरें उछाल मारती है। फिर वह भाव, सामाजिक हो या राजनीतिक, हर उस बंधन को तोड़ने के लिए आजादी की ओर स्वेता उन्मुख होता चला गया।
स्वामी विवेकानंद ने दिया था वैचारिक क्रांति का मार्ग
"तुम बस विचारों की बाढ़ ला दो बाकी प्रकृति स्वयं संभाल लेगी।"स्वामी विवेकानंद की इसी मंत्र ने पूरी दुनिया को भारत की सनातन शक्ति, धर्म अध्यात्म और उन विचारों से ओतप्रोत समाज की ओर आकृष्ट किया। पाश्चात्य की भौतिक चमक-दमक पर बहुत भारी रहा है यहां का जीवन दर्शन फिर भला वह परतंत्र कैसे रह सकता था! जिस दर्शन ने अमेरिका और यूरोप से लेकर पूरी दुनिया को प्रभावित कर दिया हो। एक तुच्छ ब्रिटेन राज उसे कैसे जीत सकता है? अपने लोगों को बार-बार महान भारत के संस्कार, यहां के वेद, ऋचाओं, महापुरुषों और सती के बल से भरी देश की नारियों के बारे में बताते बताते स्वामी विवेकानंद ने हर उस आत्मा को झकझोरने का प्रयास किया, जहां से चिंतन सूक्ष्म स्वरूप में निकल कर वैचारिक क्रांति के रास्ते लक्ष्य की ओर विराट गति से बढ़ता जाता है।
समझाई धर्म की ताकत
"देश की पहचान तभी है, जब वह राजनीतिक रुप से स्वतंत्र है।"इस बात पर उनका हमेशा जोड़ रहा है, लेकिन वह इस बात के भी पक्षधर थे किसके द्वार खोलने के लिए वह आत्मिक चेतना जरूरी है, जिसमें अपने पुरखों के प्रतीक कौरव और स्वाभिमान का रक्त शिराओं से दौड़ रहा हो। यही कारण है कि उन्होंने धर्म अध्यात्म के मार्ग से उस चेतना को जागृत करने का बीड़ा उठाया, जहां से हर सामाजिक राजनीतिक मंथन की गांठे खुलनी शुरू होती हैं। इसलिए उनकी सोच थी कि यूरोप की ताकत राजनीति हो सकती है, परंतु भारतीय समाज की ताकत उसका धर्म है।
स्वामी विवेकानंद दिया था एकता का मूल मंत्र
स्वामी विवेकानंद ने इस बात को गहराई से समझा कि अगर यहां का समाज पाश्चात्य चमक के वशीभूत हो जाए तो उनके भौतिक शरीर को परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़े रहने से कोई नहीं बचा सकता। यही कारण है कि वह भारत के युवाओं को आह्वान करते रहे कि उस पुण्य भूमि को समझो, जहां जन्म लेने का गौरव प्राप्त हुआ है। उस जड़ता को तोड़ने का आह्वान करता उनका स्वदेश मंत्र यही तो है "हे भारत! तुम मत भूलना कि तुम्हारी स्त्रियों का आदर्श सीता, सावित्री, दमयंती है। मत भूलना कि तुम्हारे उपास्य सर्व त्यागी उमानाथ शंकर है, मत भूलना कि तुम्हारा विवाह, तुम्हारा धन और तुम्हारा जीवन इंद्रिय सुख, व्यक्तिगत सुख के लिए नहीं है। मत भूलना कि तुम जन्म से ही माता के लिए बलिदान स्वरूप रखे गए हो, मत बोलना कि तुम्हारा समाज उस विराट महामाया की छाया मात्र है।"
सबसे पहले यह जरूरी है कि अपने भाई बहनों की पीड़ा से स्वयं का ह्रदय रो पड़े। यही भाव एकता की जड़े मजबूत करेगा। जब समाज टुकड़ों में विभाजित रहेगा, कोई भी आकर शासन कर लेगा। इसलिए उन्होंने कहा कि अशिक्षित, अज्ञानी, दलित सभी तुम्हारे भाई हैं, प्राण है। सामाजिक स्तर पर देश को एकता के सूत्र में पिरोते हुए एक बड़ी राजनीतिक लड़ाई के लिए तैयार की गई इस जमीन को महात्मा गांधी से लेकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस तक ने महसूस किया है।
जागृत भारत के वक्ता
"भारत का भविष्य"मैं उल्लेख है कि स्वामी विवेकानंद ने यूं ही नहीं कहा था "सुदीर्घ रजनी कब समाप्त होती हुई जान पड़ती है। महा दुख का प्रायः अंत ही प्रतीत होता है। महा निद्रा में निमग्न लाश मानो जागृत हो रहे हैं। जिस सुदूर अतीत के घना अंधकार का भेद करने में किंवदंतियां भी असमर्थ है, वहीं से एक आवाज हमारे पास आ रही है।..... और देखो, वह सोता हुआ भारत अब जागने लगा है।"उन्होंने यह सार्वजनिक भाषण 25 जनवरी सन 1897 को रामनाद के राजा द्वारा समर्पित मानपत्र के उत्तर में दिया था।
नारी शिक्षा का समझाया महत्व
स्वामी विवेकानंद ने इस बात को अच्छी तरह समझा कि आधी आबादी यानी महिलाओं को जब तक शिक्षित नहीं किया जाएगा, तब तक देश की उन्नति और कोई भी क्रांति संभव नहीं है। इसलिए उन्होंने पाश्चात्य की शिक्षा और तकनीक पर भी बल दिया, पर भारतीय सनातन आदर्श और उस नैतिक बल पर डटे रहने की शर्त के साथ। "सर्वप्रथम स्त्री जाति को सुशिक्षित बनाओ, फिर वे स्वयं कहेंगी कि उन्हें किन सुधारों की आवश्यकता है। तुम्हें उनके प्रत्येक कार्य में हस्तक्षेप करने का क्या अधिकार है?"
इस सोच के साथ स्वामी विवेकानंद ने भविष्य के उस भारत की तस्वीर करना शुरू किया, जिसमें यहां की नारियां भी कंधे से कंधा मिलाकर हर लड़ाई में साथ चल सके। ना सिर्फ इस विचार को सामने रखा बल्कि इसको धरातल पर सर्च करने का रास्ता भी सुझाया। उनके अनुसार "भारत की स्त्रियों को ऐसी शिक्षा दी जाए, जिससे वे निर्भय होकर भारत के प्रति अपने कर्तव्य को भलीभांति निभा सके। वह संघमित्रा, लीला, अहिल्याबाई और मीराबाई आदि भारत की महान देवियों द्वारा चलाई गई परंपरा को आगे बढ़ा सके और वीरप्रसू बन सके।"
सांस्कृतिक चेतना के सर्जक
स्वामी विवेकानंद भविष्य के भारत को इस दृष्टि से देख रहे थे कि चेतना और विचार के स्तर पर यहां के लोग अपनी महान संस्कृति को समझे, क्योंकि इसी के बाद ही हर लक्ष्य आसान होता चला जाएगा। इस नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने इस कथन से समझा जा सकता है "यद्यपि स्वामी विवेकानंद ने कोई राजनीतिक विचार या संदेश नहीं दिया, लेकिन जो उनके संपर्क में आया या जिसने भी उनके लेखों को पढ़ा, वह देश भक्ति की भावना से ओतप्रोत हो गया। उसमें स्वत: ही राजनीतिक चेतना पैदा हो गई।"
देश के महापुरुषों के इन विचारों को"मेरा भारत, अमर भारत" पुस्तक में संकलित किया गया है।
स्वामी विवेकानंद के विचारों से तो हर क्रांतिकारी प्रभावित थे शायद ही उस समय कोई ऐसा क्रांतिकारी हो जो उनके विचारों को ना जानता हूं गांधीजी से लेकर नेहरू तक तथा लोकमान्य तिलक रविंद्र नाथ टैगोर भी प्रभावित हुए। देश जब आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, उसमें स्वामी विवेकानंद जैसे महान मनीषी के उन विचारों को कभी भुलाया नहीं जा सकता, जिन्होंने जनमानस की आत्मा को झकझोर कर उन्हें नींद से जगाया। उन्हें आत्म बल, अपनी शक्ति और महान सांस्कृतिक थाती का एहसास कराया। वह कल भी लोगों के मन मस्तिष्क में थे और आज भी तथा कल भी सदैव रहेंगे। जय हिंद।